जीवित होने का उत्सव मनाएँ,
प्रेम की अविरल गंगा बहाएँ,
सब को अपने गले लगाएँ,
जीवन-सार समझें-समझाएँ,
जीवन का हर पल अनमोल,
कौन है जाने इसका मोल,
पल में है जीवन अपार,
पल में हो हो जाए बेड़ा पार,
इस क्षण की महिमा जिसने जानी,
वही पंडित और वही है ज्ञानी,
पल में प्रगट होती सृष्टि,
पल दे सकता दिव्य-दृष्टि,
पल कर सकता है सब कुछ खंडित,
पल कर सकता महिमा-मंडित,
इस पल को अपना सब कुछ जानें,
जीवन का अंतिम सत्य इसे मानें,
इसकी संभावनाओं को करें साकार,
स्व-अस्तित्व को दें उज्वल आकार,
हो व्यापक सोच और आचरण शुद्ध,
करें जागृत भीतर के बुद्ध,
तभी होगा सार्थक मानव-परिधान,
जब तजेंगे मोह अभिमान,
और तजेंगे मूढ़-बुद्धि,
तभी होगी आत्म-शुद्धि,
जब बनेंगे गुणों की ख़ान,
संभव तब होगा अमृत-पान!
अरुण भगत
सर्वाधिकार सुरक्षित
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Nice lines❤💯
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Thank you, Sapna dear! Stay happy.
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बहुत अच्छी कविता लिखी है सर आपने।👌🙏
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धन्यवाद, ममता मैडम! आपकी उदारता है कि आप ऐसा कह रही हैं!
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Very nice
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Thank you, Sahil! Nice of you to think and say so!
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👌👌👌
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धन्यवाद, अंकित जी! आपके कुशल- मंगल की कामना करते हैं।
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